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तरायकी उदयकी जाति है. इत्यादि कर्मके उदयकूं चितवै यह विशेष कहा. बहुरि ऐसा भी विशेष जानना जो शिक्षाव्रतमें तौ मन वचनकायसंबंधी कोई प्रतीचार भी लागे तथा काली मर्यादा आदि क्रियामें हीनाधिक भी होय हैं बहुरि इहा प्रतिमाकी प्रतिज्ञा है सो अवीचार रहित शुद्ध पलै है, उपसर्ग आदिके निमिततें टले नाहीं है ऐसा जानना. याके पांच अतीचार हैं. मन वचनं कायका डुलावना अनादर करणा, भूलिजागा ए अतीचार न लगावै. ऐसे सामायिक प्रतिमा बारह भेदकी अपेक्षा चौथा भेद भया । ॥। ३७१-३७२।।
आगे प्रोषधमाका भेद कहैं हैं, - समितेरसिदिवसे अवरहे जाइऊण जिणभवणे । किरियाकम्मं काऊ उववासं चउविहं गहिय ३७३ गिहवावारं चत्ता रा गमिऊण धम्मचिंताए । पच्चूहे उट्टित्ता किरिया कम्मं च काढूण || ३७४ || सत्यवभासेण पुणो दिवसं गमिऊण बंदणं किच्चा । रति दूण तहा पच्चूहे बंदणं किच्चा ॥ ३७५ ॥ पुज्जणविहिं च किञ्चापत्तं गहिऊण णवरि तिविहं पि भुंजाविऊण पत्तं भुंजतो पोसहो होदि ॥ ३७६ ॥
भाषार्थ - सातें तेरसिके दिन दोय पहर पीछें जिन चै