________________
(२५६) अर्यादकरै सरस तथा नीरस तथा फलाणा अन्न मिलेगा नौ लेवैगे इत्यादि वृत्तिकी संख्या गणना मर्गदा मनमें विचार चालै तैसे ही मिले तो लेप अन्यथा न लेय. बहुरि आहार लेय तब पशु गऊ प्रादिकी ज्यों करै. जैसे गऊ इतउत देखें नाही चरनेहीकी तरफ देख तेसै ले, तिसके दृचिपरिसंख्याजतप है. भावार्थ-भोजनकी आशाका निराप करनेकौं यह तप है संकल्प माफिक विधि मिलना दैव योग है यह बड़ा कठिन तप महामुनि करै हैं ॥ ४१३ ॥ ____ आगे रस परित्यागतपकौं कहै हैं,संसारदुक्खतट्ठो विससमविमयं विचिंतमाणो जो। णीरसभोज्जंभुंजइ रसचाओ तस्स सुविसुद्धो॥४४॥
भाषार्थ-जो मुनि संमार दुःखमूं तप्तायमान हूवा ऐसे विचार करता है जो इन्द्रियनिके विषय हैं ते विष सरीखे हैं विष खाये एकवार मरै है विषय सेये बहुत जन्म मरण होय हैं. ऐसा विचारि नीरस भोजन करै है ताकै रसपरित्याग तप निर्मल होय है. भावार्थ-रस छह प्रकार के हैं घृत तैल दधि मिष्ट लवण दुग्ध ऐसे बहुरि खाटा खारा मीठा कडु. वा तीखा कषायला. ए भी रस कह्या है विनिका जैसैं इ. च्छा होय तैसें त्याग करै. एक ही रस छोडै, दोय रस छोडै तथा सर्व ही छोडै ऐसे रसपरित्याग तप होय है. इहाँ कोई पूछ रसत्यागकौं कोई जाणे नाहीं मनहींमें त्याग करे वो ऐसे ही चिपरिसंख्यान है यामें वामें कहा विशेष ?