Book Title: Swami Kartikeyanupreksha
Author(s): Jaychandra Pandit
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha

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Page 304
________________ लीजिये ! पांचसौका ग्रंथराज इक्यावन रुपये मेंसिद्धांत ग्रंथ गोम्मटसारजी । (लब्धिसार क्षपदासारजी भी साथमें हैं ) ये ग्रन्थराज पांच वर्ष से हमारे यहां छप रहे थे, सो अब लब्धिसारक्षपणासारजी सहित ६ खंडोंमें छपकर संपूर्ण हो गये । जीवकांड १४०० पृष्ठ कर्मकांड संदृष्टिसहित १६००, पृष्ठ लब्धिसारक्षपणासारजी ११०० पृष्ठ कुळ ४१०० पृष्ठ श्लोक संख्या सबकी अनुमान १, २५००० के होगी । क्योंकि इन सबमें संस्कृतटीका और स्वर्गीय पं० टोडरमलजी कृत वचनिका सहित मूलगाथायें छपी हैं । कागज स्वदेशी ऐंटिक टिकाऊ ५० पौंडके लगाये गये हैं । ऐसा बडा ग्रंथ जैनसमाजमें न तो किसीने छपाया और न कोई आगे को भी छपाने का साहस कर सकता है। अगर इस समस्त ग्रन्थको हाथसे लिखवाया जाय तो ५००) रु० से ऊपर खर्च पडेंगे और १० वर्षमें भी सायद लिखकर पूरा न होगा वही ग्रंथ हाथसे लिखे हुये ग्रंथोंसे भी दो बा - तोंमें पवित्र छपा हुवा - केवल ५१) रुार्यों में देते हैं डांकखर्च ६ ।) जुदा लगेगा । ये ग्रंथराज सिद्धांत ग्रंथोंमें एक ही हैं यह जैनधर्मके समस्त विषय जानने के लिए दर्पण समान हैं । इसके पढ़े बिना - कोई जैनधर्मका जानकार पण्डित ही नहीं हो सकता । मंत्री

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