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(२७२) आगे शुभ अशुभध्यानके नाम स्वरूप कहै हैं,असुहं अह रउई धम्मं सुकं च सुहयरं होदि। आदं तिव्वकसायं तिव्वतमकसायदो रुदं ॥ ६६९॥ ____ भाषार्थ-आर्तध्यान रौद्रध्यान ए दोऊ तो अशुभध्यान हैं बहुरि धर्मध्यान अर शुक्लध्यान ए दोऊ शुभ पर शुभतर हैं तिनिमें आदिका आध्यान तौ तीव्र कषायतें होय है पर रौद्रध्यान अति तीव्र कषाय होय है ॥ ४६६ ॥ मैदकसाथ धम्मं मंदतमकसायदो हवे सुक्कं । अकसाए वि सुयट्टे केवलणाणे वि तं होदि ॥४७०॥
भाषार्थ-धर्म ध्यान है सो मंदकषायतें होय है. बहुरि शुक्लभ्यान है सो अतिशयकरि मंदकषायतें होय महामुनि श्रेणी चढे तिनिके होय है. पर कषायका अभाव भये श्रुतज्ञानी उपशांतकषाय क्षीणकषाय तथा केवलज्ञानी सयोगी अयोगी जिनके भी कहिये है. भावार्थ-धर्मध्यान तौ व्यक्तरागसहित पंच परमेष्ठी तथा दशलक्षणस्वरूप धर्म तथा प्रा. मस्वरूपविष उपयोग एकाग्र होय है ताते याकू पन्दपाय सहित है ऐसा कह्या है. बहुरि शुक्लध्यान है सो उपयोगमें व्यक्तराग नौ नाहीं अर अपने अनुभवमें न आवै ऐसा मूमराग सहित श्रेणी चढ़े है तहां आत्मपरिणाम उज्वल होय हैं यातें शुचि गुणके योगनैं शुक्ल कया है. ताकू मन्दतम. कषाय कहिये अतिशय मंदपायतें होय है ऐसा कया है तथा कमायके प्रभाव भये भी कहया है।॥ ४७०॥.