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(२८७) जन्महीतै ब्रह्मचारी हैं तानै यह रची है, सो श्रद्धाकरि रची है. ऐसा नाहीं जो कथनमात्रकरि दिई हो इस विशेषणते अनुप्रेक्षात अति प्रीति सूचै है. बहुरि प्रयोजन कहै हैं कि,. जिन वचनकी भावनाकी अर्थ रच्या है. इस वचन ऐसाजनाया है जो ख्याति लाभ पूजादिक लौकिक प्रयोजनके अर्थ नाहीं रच्या है. जिनवचनका ज्ञान श्रद्धान भया है ताकौं वारम्बार भावना स्पष्ट करना यात ज्ञानकी वृद्धि होय कषायनिका प्रलय होय ऐसा प्रयोजन जनाया है. बहुरि दूजा प्रयोजन चंचल मनकौं थांमनेके अर्थ रची है. इस विशेष. णत ऐसा जानना जो मन चंचल है सो एकाग्र रहै नाही. ताों इस शास्त्रमें लगाइये तो रागद्वेषके कारण जे विषय तिनिविष न जाय. इस प्रयोजनके अर्थ यह अनुप्रेक्षा ग्रंथकी रचना करी है. सो भव्य जीवनिकौं इसका अभ्यास करना योग्य है. जाते जिनवचनकी श्रद्धा होय, सम्यग्ज्ञानकी बधवारी होय. पर मन चंचल है सो इसके अभ्यासमें लगै अन्य विषयनिविष न जाय ॥ ४८७ ॥ ___ मागे अनुमेक्षाका माहात्य कहि भव्यनिकौं उपदेशरूप फलका वर्णन करै हैं,वारसअणपेक्खाओ भणियाह जिणागमाणुसारेण । जो पढइ सुणइ भावइ सो पाइउ सोक्खं ॥
भाषार्थ-ए बारह अनुप्रेक्षा जिन आगमके अनुसार ले भगटकरि कही हैं ऐसा वचनकरि यह जनाया हेमे में क.