Book Title: Swami Kartikeyanupreksha
Author(s): Jaychandra Pandit
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha

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Page 293
________________ (२८०) अक्षर सर्व हैं. परहंतका प्रकार अशरीर जे सिद्ध तिनिका प्रकार प्राचार्यका श्राकार उपाध्यायका उकार मुनिका मकार ऐसे पांच अपर अ+अ+या+उ+म="ओम्" ऐसा सिद्ध होय है. ऐसे ए मंत्रवाक्य हैं सो इनिका उच्चारणरूपकरि मनविष चितवनरूप ध्यान करै. तथा इनिका गच्य अर्थ जो परमेष्ठी तिनिका अनन्तज्ञानादिरूा स्वरूप विचारि ध्यान करना, बहुरि अन्य भी बारह हजार श्लोकरूप नमस्कार ग्रन्ग हैं ताके अनुसार तथा लघुबह सिद्धचक्र प्रतिष्ठा ग्रंथनिमें मन्त्र कहे हैं तिनिका ध्यान करना, मन्त्रनिका केताइक कयन भंस्कृत टीकामें है सो तहाँ जानना. इहां सं. क्षेप लिख्या है. ऐसे पदस्थध्यान है. बहुरि पिंड नाम श. रीरका है तिसविष पुरुषाकार अमूर्तीक अनन्तचतुष्टयकरि संयुक्त जैसा परमात्माका म्वरूप तैसा आत्माका चितवन करना सो पिंडस्थध्यान है. बहुरि रूप कहिये अरहंतका रूप समवसरणविषै धाविकर्मरहित चौंतीस अतिशय आठ प्रातिहार्यकरि सहित अनन्तचतुष्टयमंडित इन्द्र आदिकरि पूज्य परम औदारिक शरीरकरि युक्त ऐसा भरहंतकुं ध्यावै तथा ऐसा ही संकल्प अपने प्रात्माका करि आपकू ध्याचे सो रूपस्थ ध्यान है. बहुरि देहविना बाह्यके अतिशयादिकविना अपना परका ध्याता ध्यान ध्येयका भेदविना सर्व विकल्प[४] अरहंता असरोरा आइरिया तह उवझया मुणिणो। पढमक्खरणिप्पणी ओंकारो पंचपरमेहो ॥१॥

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