Book Title: Swami Kartikeyanupreksha
Author(s): Jaychandra Pandit
Publisher: Bharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha

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Page 280
________________ (२६७) छारहित होय है. बहुरि दुष्ट जे मनके खोटे विकल्प तिनिके नाश करनेकू समर्थ होय ताक तचके निश्चय करनेका कारण पर ध्यानकी सिद्धि करनेवाला स्वाध्यायनामा तप होय है. भावार्थ-जो परकी निंदा करनेविष परिणाम राखै अर आत्तरौद्रव्यानरूप खोटे विकल्प मनमें चितवन कीया करै ताकै शास्त्रनिका अभ्यासरूप स्वाध्याय कैसैं होय ताते तिनिकौं छोडि स्वाध्याय करै ताकै तत्वका निश्चय होय अर धर्म्यशुक्लध्यानकी सिद्धि होय, ऐसा स्वाध्याय तप है ॥ ४५६ ॥ पूजादिसु णित्वेक्खो जिणसत्थं जो पढेइ भत्चीए । कम्ममलसोहणटुं सुयलाहो सुहयरो तस्स ॥४६० ॥ भाषार्थ-जो मुनि अपनी अपनी पूजा महिमा आदिविषै तौ निरपेक्ष होय, बांछारहित होय अर भक्तिकरि जि. नशास्त्र पढे, बहुरि कर्ममलके सोनेके अर्थ पढे ताकै श्रुतका लाभ सुखकारी होय. भावार्थ-जो पूजा महिमा आदिके अर्थ शास्त्रकू पढे है ता| शास्त्रका पढना सुखकारी नाही. अपने कर्मक्षयके निमित्त जिनशास्त्रनिहीकौं पढ़ ताके सुखकारी है ॥ ४६०॥ . जो जिणसत्थं सेवइ पंडियमानी फलं समीहंतो। साहाम्मयपडिकूलो सत्थं पि विसं हवे तस्स ४६१ भाषार्थ-जो पुरुष जिनशास्त्र तौ प? है अर प्रापकै

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