________________
( २६१ )
• आचार्य पास जाय दशदोषवर्जित भालोचना करें. ते प्रेमाद- इन्द्रिय ५ निन्द्रा १ कषाय ४ विकथा ४ स्नेह १ थे पांच हैं तिनके पंदरह भेद हैं भंगनिकी अपेक्षा बहुत भेद होय हैं तिनिकरि दोष लागे है. बहुरि आलोचनाके दर्श दोष हैं तिनिके नाम प्राकंपित १ अनुमानित २ वादर ३ सूक्ष्म ४ दृष्ट ५ प्रच्छन्न ६ शब्दाकुलित ७ बहुजन ८ अव्यक्त ९ तत्सेवी १० ए दश दोष हैं. तिनिका अर्थ ऐसा जो प्राचार्यकूं उपकरणादि देकरि आपकी करुणा उपजाय आलोचना करें जो ऐसें कीये प्रयश्चित थोडा देसी, ऐसा विचारै तौ यह आकंपितदोष है. बहुरि वचन ही करि प्राचार्यनिकी बडाई श्रादिकरि बालोचना करै अभिप्राय ऐसा राख जो आचार्य मोसूं प्रसन्न रहे तौ प्रायश्चित्त थोडा बतावै, ऐसें अनुमानित दोष है, बहुरि प्रत्यक्ष दृष्टदोष होय सो कहै अदृष्ट न कहै सो दृष्टदोष है. बहुरि स्थूल बढा दोष तौ कहै सूक्ष्म न कहै सो वादरदोष है, बहुरि सूक्ष्म दोष ही कहै वादर न कहै यह जनावै यानें सूक्ष्म ही कह दिया सो बादर काकूं छिपावै सो सूक्ष्मदोष है. बहुरि छिपाकर ही कहै कोई अन्य अपना दोष कला है तब
(१) विकहा तहा कषाया इंदिय णिद्दा तहेव पणओ य । चर चर पण मेगेगं होदि पमादा हु पण्णरसा ॥ १ ॥ [ २ ] आकंपिय अणुमाणिय जं दिट्ठ वादरं च सुहमं च । छष्णं सद्दाउलियं बहुजणमव्वत्त तस्सेवी ॥ २ ॥