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(२१८) अब पहिले ही उत्तमक्षमाधर्मकू कहे हैं,कोहेण जो ण तप्पदि सुरणरतिरिएहिं कीरमाणे वि उवसग्गे वि रउददे तस्स खिमाणिम्मलाहोदि ३९४ ___ भाषार्थ-जो मुनि देव मनुष्य तिर्यच आदिकरि रौद्र भयानक घोर उपसर्ग करते सतें भी क्रोधकरि ततायमान न होय तिस मुनिके निर्मल क्षा होय है. भावार्थ-जैस श्रीदत्त मुनि व्यंतरदेवकृत उपसर्ग• जीति केवलज्ञान उपजाय मोक्ष गये, तथा चिलातीपुत्र मुनि व्यंतरकृत उपसर्गकू जीति स. वार्थसिद्धि गये, तथा स्वामिकार्तिकेयमुनि क्रोचराजाकृत उ. पसर्ग जीति देवलोक पाया. तथा गुरुदत्त मुनि कपिल ब्रा. माकृत उपसर्ग जीति मोक्ष गये. तथा श्रीधन्य मुनि चक्र. राजकृत उपसगकौं जीति केवल उपजाय मोक्ष गये, तया पांचसै मुनि दंडक राजाकृत उपसर्ग जीति सिद्धि पाई, तथा राजकुमारमुनि पांशुलश्रेष्ठोकृत उपसर्ग जीति सिद्धि पाई. तया चाणिक्य आदि पांचसै मुनि मन्त्रीकृत उपसर्गकौं जीति मोक्ष गये, तथा सुकुमाल मुनि स्यालनीकृत उपसर्ग सहकरि देव भये, तथा श्रेष्ठीके वाईस पुत्र नदी के प्रवाहविषै पद्मासन शुभ ध्यानकार मरणकरि देव भये, तथा सुकोशल मुनि व्याघ्री. कृत उपसर्ग जीति सर्वार्थसिद्धि गये, तथा श्रीपणिकमुनि ज. लका उपसर्ग सहकरि मुक्ति गये. ऐसे देव मनुष्य पशु अचेतन कुन उपसर्ग सहे, तहां क्रोध न कीया तिनिकै उत्तम क्षमा मई, तैसे उपसर्ग करनेवाले कोष न उपजे, तब उ