________________
(२२५) कीया है. ताका संक्षेप-जो संयम दोयप्रकार है. उपेक्षासंयम, अपहतसंयम । तहां जो स्वभावहीत रागद्वेषकू छोडि गुप्ति धर्मविषै कायोत्सर्ग ध्यानकरि तिष्ठै तहां ताके उपेक्षासंयम कहिये. उपेक्षा नाम उदासीनता वा वीतरागताका है.बहुरि अपहृतसंयमके तीन भेद हैं. उत्कृष्ट मध्यम जघन्या तहांचा. लतां बैठतां जो जीव दीखे तासूं श्राप टलिजाय जीवकू सरकाव नाहीं सो उत्कृष्ट है. बहुरि कोमल मयूरकी पीछीकरि जीवकू सरकावै सो मध्यम है. बहुरि अन्य तृणादिकतें सरकावै सो जघन्य है. इहां अपहृत संयमीकू पंच समितिका उपदेश है. तहां आहार विहारके अर्थ गमन करै सो मासुक मार्ग देखि जूडा प्रमाण भूमिकू देखते मंद मंद प्रति यत्न हैं गमन करै. सो ईर्यासमिति है. बहुरि धर्मोपदेश आदिके निमित्त वचन कहै सो हितरूप मर्यादनै लीयां सन्देहरहित स्पष्ट अक्षररूप वचन कहै. बहु प्रलाप आदि वचनके दोष हैं तिनित रहित बोले सो भाषासमिति है. बहुरि कायकी. स्थितिके अर्थ आहार करै सोमनवचनकाय कृत कारित अनुमोदनाका दोष जामें न लागे, ऐसा परका दीया छिया. लीस दोष, बत्तीस अंतराय टालि चौदहमलरहित अपने हाथ विषै बड़ा अतियत्नतें शुद्ध पाहार करै सो एषणा समिति है. बहुरि धर्मके उपकरणनिकू उठावना धरना सो अतिय. लतें भूमिकं देखि उठावना धरना सो आदान निक्षेपण स.' मिति है. बहुरि अगका मल मूत्रादिक क्षेपण सो स थावर जीवनिकू देखि टालिकरि यत्नतें क्षेपना सो प्रतिष्ठापना