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(२३६ ) भनाम अशुभप्रायु अशुभगोत्र पापकर्म कहे हैं सो दश लक्षण धर्मवू पापका नाश करनेवाला पुण्यका उपजामनहारा कहया तहां केवल पुण्य उपजाबनेका अभिप्राय राखि इनिकू न सेवणे जातें पुराय भी बंध ही है. ए धर्म तौ पाप जो घाति कर्म ताके नाश करनेवाला है. अर अधातिमें अशुभ प्रकृति हैं तिनिका नाश करै है. अर पुण्य कर्म हैं ते संसारके - भ्युदयकू देहैं सो इनित तिसका भी व्यवहार अपेक्षा बन्ध होय है तौ स्वयमेव होय ही है. तिसकी बांछा करगा तो संसारकी बांछा करना है, सो यह तो निदान भया, मोक्षका अर्शकै यह होय नाही. जैसे किसाण खेती नाजके अर्थ करे है ताके पास स्वयमेव होय है. ताकी बांछा काहेळू करे मोक्षके अर्थीकं पुण्यबंधकी बांछा करना योग्य नाही ४०८ पुण्णं पि जो समच्छदि संसारो तेण ईहिदो होदि। पुण्णं सग्गइ हेउं पुण्णखयेणेव णिवाणं ॥ ४०९॥ ___ भाषार्थ-जो पुण्यकौं भी चाहै है तिस पुरुषने संसार चाया. जाते पुण्य है सो सुगतिका बंधका कारण है अर मोक्ष है सो भी पुण्यका भी तयकरि होय है. भावार्थ-पु. ण्यतै सुगति होय है. सो जाने पुण्य चाह्या तिसने संसार चाहया सुगति है सो संसार ही है. मोक्ष तौ पुण्यका भी क्षय भये होय है. सो मोक्षका अर्थीकौं पुण्यकी बांछा करणा योग्य नाहीं॥४०९ ॥