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(२५२) · ताकू सुनि चितवो सतत, गहि पावौ भवपार ॥१२॥
इति धर्मानुप्रेक्षा समाप्ता ॥ १२ ॥
अथ द्वादश तपांसि कथ्यंते. आगे धर्मानुप्रेक्षाकी चूलिकाकू कहता सता आचार्य बारहप्रकार तपके विधानका निरूपण करै है,बारसभेओ भणिओ णिज्जरहेऊ तवो समासण, तस्स पयारा एदे भणिजमाणा मुणेयवा ॥ ३६॥ ___ भाषार्थ-तप है सो बारह प्रकार संक्षेपकरि जिनागमः विष कह्या है. कैसा है ?कर्म निजराका कारण है तिसके प्र. कार भागें कहेंगे ते जानने. भावार्थ-निर्जराका कारण तप है सो बारहप्रकार है. वाडके अनशन अवमोदर्य वृत्तिपरिसंख्यान रसपरित्याग विविक्तशय्यासन कायक्लेश ऐसे छः प्रकार. बहुरि अन्तरंगका प्रायश्चित्त विनय वैयावृत्य स्वाध्याय व्युत्सर्ग ध्यान ऐसे छह प्रकार. इनिका व्याख्यान अब करिये हैं तहां प्रथम ही अनशन नाम तप• च्यारि गाथाकरि कहै हैं,उवसमणं अक्खाणं उववासो वण्णिदो मुर्णिदेहि । तमा भुजुता वि य जिदिदिया होंति उववासा ॥ ३७ ॥
भाषार्थ--मुनीन्द्र हैं तिनिने इन्द्रियनिका उपवास कहिये विषयनिमें न जानै देना पनकं अपने आत्मस्वरूपविर्षे लगावणा सो उपवास. कहा है. तातें जितेन्द्रिय हैं ते