________________
(२४५)
निकीरचना करि तथा अनेकमकार युक्तिकरिवादीनिकानि. राकरणकरि तथा अनेक अतिशय चमत्कार पूजा प्रतिष्ठा तथा महान् दुदर तपश्चरणकरि जिनशासनका माहात्म्य प्रगद करै ताकै प्रभावना गुण निर्मल होय है. भावार्थ-यह प्र. भावना गुण बडा गुण है यात अनेक अनेक जीवनिकै धमकी रुचि श्रद्धा उपजि आवै है तातें सम्यग्दृष्टी पुरुषनिकै अवश्य होय है ॥ ४२२ ॥ ____आगे निःशंकित आदि गुण किस पुरुषकै होंय ताकौं
जो ण कुणदि परतात्तं पुण पुण भावेदि सुद्धमप्पाणं। इंदियसुहणिरवेक्खो णिस्संकाईगुणा तस्स ॥ २३ ॥ ___ भाषार्थ-जो पुरुष परकी निंदा न करै बहुरि शुद्ध प्रास्माकौं बार बार भाव बहुरि इन्द्रिय सुखकी अपेक्षा. बांछा रहित होय ताकै निःशंकित आदि अष्टगुण अहिंसाधर्मरूप सम्यक्त्व होय है. भावार्थ-इहां तीन विशेषण हैं तिनिका तापर्य यह है कि जो परकी निंदा करै ताकै निर्विचिकित्सा पर उपगृहन स्थितिकरण गुण कैसे होय तथा बात्सल्य कैसे होय ताते परका निंदक न होय तब ये चार गुण होय हैं. बहुरि जाकै अपना आत्माका वस्तु स्वरूपमें शंका संदेह होय तथा मूढ दृष्टि होय सो अपने आत्माकौं वारम्बार शुद्ध कैसैं भावै तातै शुद्ध आपकौं भाव ताहीकै निशिंकित वया अमूढदृष्टि गुण होय. तथा प्रभावना भी ताहीक होय