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(२४०) दिक धर्मविषै संशय होय शंका है. याका न करणां सो नि:शंका है. भावार्थ-इहां आदि शब्दतै कहा दिगम्बर यती. निहीकौं मोक्ष है. कि तापस पंचाग्नि आदि तप करै तिनिकौं भी है अथवा दिगम्बरकौं ही मोक्ष है कि श्वेताम्बर कौं है अथवा केवली कवलाहार करै है कि नाहीं करै है अथवा स्त्रीनिवौं मोक्ष है कि नाही अथवा जिनदेव वस्तुकौं अनेकांत व ह्य है सो सता है कि असत्य है ऐसी आशंका नक सो निःशंकित अंग है ।। ४१३ ॥ दयभावो वि य धम्मो हिंसाभावो ण भण्णदे धम्मो इदि संदेहाभावो णिस्सका णिम्मला होदि ॥ ४१४॥
भाषार्थ-निश्चय दयाभाव ही धर्म है हिंसाभाव धर्म न कहिये ऐसे निश्चय भये संदेहका अभाव होय सो ही निर्मल निशंकित गुण है. भावार्य-अन्यमतीनैं मान्या जो विपरीत देव धर्म गुरुका तथा तत्त्वका स्वरूप ताका सर्वथा निषेधकरि जिनमतका कह्या श्रद्धान करना सो निःशंकित गुण है शंका रहे जेते श्रद्धान निर्मल होय नाहीं ॥४१४॥ ___आगे निकांक्षित गुणकौं कहै हैं,जो सग्गसुहणिमित्तं धम्म णायरदि दूसहतवेहि । मुक्खं समीहमाणो णिकंक्खा जायदे तस्स ॥४१५॥ ___भाषार्थ-जो सम्पादृष्टी दुद्धर तपकरि भी स्वर्गसुख के अर्थ धर्मकौं अाचरण न करै तिसकै निकांक्षित गुण होय