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भावार्थ - ऐसे दश प्रकार धर्म है सो ही दशलक्षण स्वरूप धर्म नियमकरि है. बहुरि अन्य जहां सूक्ष्म भी हिंसा होय सो धर्म नाहीं है. भावार्थ- जहां हिंसाकरि भर विसकूं कोई अन्यपती धर्म था है, तिसकूं धर्म न कहिये. यह दशलक्षणस्वरूप धर्म कहया है सो ही धर्म नियमकरि है ४०४
आगे इस गाथामें कहया है जो जहां सूक्ष्म भी हिंसा होय तहां धर्म नाहीं तिस ही अर्थ स्पष्टकरि कहै हैं, - हिंसारंभ ण सुहो देवणिमित्तं गुरूण कज्जेसु । हिंसा पावं ति मदो दया पहाणी जदो धम्मो ॥४०५॥
भाषार्थ - जातें हिंसा होय सोपान है, ऐसें कहया है. बहुरि धर्म है सो दया प्रधान है, ऐतें कहया है, तातें देव के निमित्त तथा गुरुके कार्यके निमित्त हिंसा आरम्भ सो शुभ नाहीं है. भावार्थ - अन्यपती हिंसामें धर्म थाएँ हैं. मीमांसक तो यह करे हैं, तहां पशुनिकों होने हैं ताका फल शुभ क है हैं, बहुरि देवीके भैरूंके उपासक बकरे यादि मारि देवी भैरूकै चढ़ावे हैं ताका शुभ फल माने हैं. बौद्धपती हिंसाकरि मांसादिक आहार शुभ कहे हैं. बहुरि श्वेताम्बरनिके केई सूत्रनिमें ऐसें कही है जो देव गुरु धर्मके निमित्च चक्रवर्तिकी सेनाने चूरिये जो साधु ऐसैं न करै है तो धनन्त संसारी होय. कहूं मद्यमांसका आहार भी लिखा है. इनि सर्वनिका निषेध इस गाथामें जानना जो देव गुरुके कानिमित्त हिंसाका प्रारम्भ करे है सो शुभ नाहीं. धर्म है