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(२१६) काल आया जाण तब पाराधनासहित होय एकाग्रचित्तकरि परमेष्ठीका ध्यानमें निष्ठ समाधिकारि प्राण छोडै, सो साधक कहावै, ऐमा व्याख्यान है. यहुरि कया है जो गृहस्थ द्र. व्यका उपार्जन करै ताके छह भाग कर. तामें एक भाग तो धर्मके अर्थ दे. एक भाग कुटुंबके पोषणैमें दे. एक भाग अ. पने भोगके अर्थ खरचै, एक अपने स्वजन समूह अर्थ व्योहारमें खरचै, बाकी दोय भाग रहैं ते अमानत भंडार राख वह द्रव्य बडा पूजन अथवा प्रभावना तथा काल दुकालमें अर्थ श्रावै. ऐसे कीये गृहस्पके आकुलता न उपज है. धर्म सधै है. इहां कथन संकृतटीकाकारने बहुत कीया है. तथा पहले गाथाके कथनमें अन्य ग्रन्थनिका कयन सधै है कथन बहुत कीया है सो संस्कृत टीकातें जानना. इहां तौ गाथाहीका अर्थ संक्षेपकरि लिख्या है. विशेष जाननेकी इच्छा होय सो स्यवसार, बसुनंदिकृतश्रावकाचार, रत्नकरण्डश्रावकाचार, पुरुषार्थसिद्धयुपाय, अमितगतिश्रावकाचार, प्राकतदोहाबंध श्रावकाचार, इत्यादि ग्रन्थनितें जान, इहां संक्षेप कथन है, ऐसे बारहभेदरूप श्रावधर्मका कथन कीया ३९१ ____ आगें मुनिधर्मका व्याख्यान करै हैं,जो रयणत्तयजुत्तो खमादिभावेहिं परिणदो णिच्च । सव्वत्थ वि मज्झत्थो सो साहू भण्णदे धम्मो ३९२
भाषार्थ-जे पुरुष रत्नत्रय कहिये निश्चय व्यवहाररूप सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रकरि युक्त होय, बहुरि क्षमादिभाव क