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वाका धारक साधक श्रावक कहिये. तहां पक्ष तौ ऐसा जो मार्गमैं त्रसहिंसाका त्यागी श्रावक कया है, सो मैं प्रसजीवकू मेरे प्रयोजनके अर्थ तथा परके प्रयोजनके अर्य मारूं नाही. धर्मके अर्थ तथा देवताके अर्थ तथा मन्त्रसाधनके अर्थ तथा औषधके अर्थ तथा आहारके अर्थ तथा अन्य भोगकेअर्थ भारूं नाहीं ऐसा पक्ष जाकै होय सो पाक्षिक है. सोयाके असि मसि कृषि वाणिज्य आदि कार्यनिमें हिंसा होय है तौऊ मारनेका अभिप्रत नाहीं है. कार्यका अभिमाय है तहां घात होय है ताकी अपनी निंदा करै है. ऐसे त्रस हिंसा न करनेकी पक्षमात्रतें पाक्षिक कहिये है. यह अप्रत्याख्यानावरण कषायके मंद उदयके परिणाम हैं तातें अवती ही है। व्रत पालनेकी इच्छा है परन्तु निरतिचार व्रत पले नाही तातें पाक्षिक ही कया है. बहुरि नैष्ठिक होय है तर अनुक्रयतें प्रतिमाकी प्रतिज्ञा पल है. याकै अप्रत्याख्यानावरण कषायका अभाव भया तातै पांचवां गुणस्थानकी प्रतिज्ञा निरतिचार पलै. तहां प्रत्याख्यानबरण कषायके तीव्र मंद भेदनित ग्यारह प्रतिमाके भेद हैं. ज्यों ज्यों कषाय मंद होती जाय त्यों त्यों भागिली प्रतिमाकी प्रतिज्ञा होती जाय. तहां ऐसे कया है जो घरका स्वामिपना छोडि गृहकार्य तौ पुत्रादिककू सौंपै अर श्राप यथाकपाय प्रतिमाकी प्रतिक्षा अंगीकार करता जाय, जेते सकल संयम न ग्रहै तेते ग्यास्मी प्रतिमाताई नैष्ठिक श्रावक कहावै. बहुरि जब मरण