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भी व्रत अतीचाररहित निर्मल पालै तौ नानाप्रकारकी अ. द्धिनिकरि युक्त इन्द्रपणा नियमकरि पावै. भावार्थ-इहां एक भी व्रत प्रतीचाररहित पालनेका फल इन्द्रपणा नियमकरि कह्या. तहां ऐसा प्राशय मृचे है जो व्रतनिके पालनेके प. रिणाम सर्वके समानजाति हैं. जहां एक व्रत दृढचित्तकरि पालै तहां अन्य तिसके समान जातीय व्रत पालनेके अर्थ अविनाभावीपणा है सो सर्व ही वर पाले कहे. बहुरि ऐसा भी है जो एक आखडी त्याग• अन्तसमै ढविचकरि ५. कडि ताविषै लीन परिणाम भये मंतै पर्याय छुटै तौ तिसकाल अन्य उपयोगके अभावतें बहा धर्म्य ध्यान सहित परगतिकू गमन होय तब उच्चगति ही पावै. यह नियम है. ऐसा आशयनै एक व्रतका ऐसा माहात्म्य कह्या है. इहां ऐसा न जानना जो एक व्रत तौ पालै अर अन्य राप सेया करै ताका मी ऊंचा फल होय. ऐसे तो चोरी छोडै पात्री सेयवो करें हिंसादिक करवो करै ताका भी उच्च फल होय सो ऐसा नाहीं है. ऐसे दूजी व्रतपतिमाका निरूपण कीया. बारह मेदकी अपेक्षा यह तीसरा भेद भया ।। ३७० ॥ ____ श्रागें तीजी सायायिकमातमाका निरूपण करै हैं,जो कुणइ काउसग्गं वारसआवत्तसुजुदो धीरो । णमुणदुर्ग पि करतो चदुप्पणामो पसण्णप्पा ३७१ चिंतंतो ससरूवं जिणबिंब अहव अक्खरं परमं ।