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(२१०) .. भाषार्थ-जो ज्ञानी सम्यग्दृष्टी श्रावक सर्व ही च्यारि प्रकारकी स्त्री देवांगना मनुष्यणी तिथंचणी चित्रामकी इत्या. दि स्त्रीका अभिलाष मन वचनकायकरि न करै सो ब्रह्मचर्य व्रतकाधारक हो है। कैसा है ? दयाका पालनहारा है. भावार्थसर्व स्त्रीका मनवचनकाय कृतकारितअनुमोदनाकरि सर्वथा त्याग करै सो ब्रह्मचर्य प्रतिमा है ॥ ३८४ ॥ __आगे आरंभविरति प्रतिमाकौं कहै हैं,जो आरंभ ण कुणदि अण्णं कारयदि णेय अणुमण्णो हिंसासंतठ्ठमणो चत्तारंभो हवे सो हि ॥ ३८५ ॥ __भाषार्थ-जो श्राक्क गृहकार्यसंबंधी कछू भी आरंभ न करै अन्य पास करावै नाही. बहुरि करै ताकौं भला जाण नाहीं सो निश्चयतै आरंभका त्यागी होय है. कैसा है ? हिंसातें भयभीत है मन जाका. भावार्थ-गृहकार्यका आरंभका मन वचन काय कृत कारित अनुमोदनाकरि त्याग करै सो आरंभ त्याग पतिमाधारक श्रावक होय है. यह प्रतिमा आठमी है बारह भेदनिमें नवमा भेद है ॥ ३८५ ॥
प्रागें परिग्रहत्याग प्रतिमाकू कहै हैंजो परिवजह गंथं अभंतर बाहिरं च साणंदो। पावं ति मण्णमाणो णिग्गंथो सो हवे णाणी ३८६ - भाषार्थ-जो ज्ञानी सम्यग्दृष्टि श्रावक अभ्यंतरका गर बाह्यका यह जो दो प्रकारका परिग्रह है सो पापका कारण