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(१८२) भाषार्थ-जो हिंसाका वचन न कहै बहुरि कर्कश वचन न कहै बहुरि निष्ठुर वचन न कहै बहुरि परका गुह्य वचन न कहै. तो कैसा बचन कहै ? परके हितरूप तथा प्रमाणरूप वचन कहै. बहुरि सर्व जीवनिकै संतोषका करनहारा वचन कहै, बहुरि धर्मका प्रकाशनहारा वचन कहै सो पुरुष दूसरा अणुव्रतका धारी होय है। भावार्थ-असत्य वचन अनेक प्र. कार है. तहां सर्वथा त्याग तौ साल चारित्री मुनिकै होय है अर अणुव्रतमें स्थूलका ही त्याग है. सो जिस वचननै प. रजीवका घात होय ऐसा तो हिंपाका वचन न कहै बहुरि जो वचन पर• कडवा लागै सुगाते ही क्रोधादिक उपजै ऐसा कर्कश वचन न कहै. बहुरि परके उद्वेग उपजि आवै, भय उपजि आवै, शोक उपजि आवै कलह उपजि आवै ऐसा निष्ठुरवचन न कहै. बहुरि परके गोप्य मर्मका प्रकाश कर नेवाला वचन न कहै. उपलक्षणत और भी ऐसा जामैं परका बुरा होय सो वचन न कहै. बहुरि कहै तौ हितमित वचन कहै । सर्व जीवनिक संतोष उपजै ऐसा कहै. बहुरि धर्मका जात प्रकाश होय ऐसा कहै. बहुरि याके अतीचार अन्य ग्रंथनिमें कहे हैं जो मिथ्या उपदेश रहोभ्याख्यान कूटलेखक्रिया न्यासापहार साकारमन्त्रभेद सो गाथामें विशे. पण कीये तिनित सर्व गर्भित भये. इहां तात्पर्य ऐसा जा. नना जो जाते परजीवका बुरा होय जाय अपने उपरि आ. पदा आवै तथा या प्रलाप वचन" अपने प्रमाद बढे ऐसा स्थूल असत्य वचन अणुव्रती कहै नाही. परपासि कहाकै