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(१९८) भागे आहार आदि दानका माहात्म्य कहै हैं,भोयणदाणेण सोक्खं ओसहदाणेण सत्थदाणं च । जीवाण अभयदाणं सुदुल्लहं सव्वदाणाणं ॥ ३६२ ।। ___ भाषार्थ-भोजन दानकरि सर्व सुख होय है । बहुरि
औषध दानकरि सहित शास्त्रदान पर जीवनकू अभय दान है सो सर्व दाननिमें दुर्लभ पाइए है उत्तम दान है । भावार्थ इहां अभयदान• सर्वतें श्रेष्ठ कया है ॥ ३६२ ॥ ___आगे पाहारदान• प्रधानकरि कहै हैं,-- भोयणदाणे दिपणे तिण्णि वि दाणाणि होति दिण्णाणि भुक्खतिसाएवाही दिणे दिणे होंति देहीणं ॥३६३॥ भोयणबलेण साहू सत्थं संवदि रचिदिवहं पि। भोयणदाणे दिण्णे पाणा वि य रक्खिया होंति ३६४
भाषार्थ-भोजन दान दीये संत तीन ही दान दीये होय हैं जातें भूख तृषा नामका रोग प्राणीनिकै दिन दिन प्रति होय है । बहुरि भोजा के बलकार साधु रात्रि दिन शास्त्रका अभ्यास करै है बहुरि भोजनके देने करि प्राणभी रक्षा होय है । ऐसें भोजनके दानकरि औषध शास्त्र भ. भयदान ए तीनं ही दीये जानने । भावार्थ-भूख वृषा रोग मेटनेतें नौ आहारदान ही औषधदान भया। आहारके ब. लते शास्त्राभ्यास सुखसू होनः ज्ञानदान भी एही भया ।