________________
(१९६) बना सोई भए भाभरण तिसकरि आत्माकू. शोभायमानकरि उपवास तथा एकभक्त तथा नीरस आहार करै तथा आदि शब्दकरि कांजी करै. केवल भात पाणी ही ले. ऐसे करै ता प्रांषधोपवासवत नामका शिक्षाबत होय है. भावार्थजैसैं सामायिक करने• कालका नियमकरि सर्व पापयोगसू निवृत्त होगकरि एकान्त स्थानमें धर्मध्यानकरता संता बैठे. तैसे ही सर्व गृहकार्यकू त्यागकरि समस्त मोग उपभोग सामग्रीकू छोडिकरि सातै तेरसिके दोय पहर दिन पीछ एकान्त स्थानक बैठे, धर्मध्यान करता संता सोलह पहर ताई मुनिकी ज्यों रहै, नवमी पूर्णमासीकू दोयपहरां प्रतिज्ञा पूरण होय, तब गृहकारजमें लागै. ताकै प्रोषधवत होय है. आ3 चौदसिके दिन उपवासकी सामर्थ्य न होय तो एक बार भोजन करै. तथा नीरस भोजन कांजी आदि अला पाहार कर ले. समय धर्मध्यानमें लगावै. सोलह पहर आगे प्रोषध प्रतिमागे कही है. तैसे करै, परन्तु इहां गायामें न कही तात सोलह पहरका नियम न जानना. यह भी मुनिव्रतकी शिक्षा ही है ॥ ३५८-३५९ ॥
भागें अतिथिसंविभाग नामक तीसरा शिक्षाबूत कहै हैं,.. तिविहे पत्तम्मि सया सद्धाइगुणेहिं संजुदो णाणी। दाणं जो देोदे सयं णवदाणविहीहिं संजुत्तो ॥३६० सिक्खावयं च तदियं तस्स हवे सव्वसोक्खसिद्धियर