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बहुरि अपना स्वरूपविष लीन हवा संता अथना सायिक का बंदनाका पाठके अर्थकू चितवता सता प्रव, बहुरि क्षेत्रका परिमाणकरि सर्व सावधयोग जो गृह 8 दि पापयोग ताकौं त्यागकरि पापयोग” रहित होय शायिक करें सो श्रावक तिसकाल मुनि सारिखा है. भावार्थ-ह शिक्षाव्रत है तहां यह अर्थ सूचै है जो सामायिक है सो सर्व रागद्वेषसू रहित होय सर्व बाहय के पायोग क्रिया र देत होय अपने आत्मस्वरूपकेविषे लीन हूवा मुनि प्र है सो यह सामायिक चारित्र मुनिका धर्म है. हो ही शिक्षा श्रावककू दीजिये है जो सामायिक कालकी मर्यादाकरि तिस कालमें मुनिकी रीति प्रवत जातैं मुनि भये ऐसे सदा रहना होयगः, इस ही अपेक्षाकरि तिसकाल मुनि सारिखा थावक कया है ।। ३५५-३५७ ॥
आगें दूसरा शिक्षाव्रत प्रोग्योपासकू कहै हैं,ण्हाणविलेवणभूसणइत्थीसंसग्गगंधधूपदीवादि। जो परिहरेदि णाणी वेरग्गाभरणभूसणं किच्चा ३५८ दोसु वि पव्वेसु सया उववासं एपमहामिबियडी जो कुणइ एवमाई तस्स वयं पोसह विदियं ॥३५९॥
भावार्थ-जो ज्ञानी श्रावक एक पक्ष होय पर्व आ चौदसिविपै स्नान विलेपन भाभूषण
स सर्ग सुगंध धूप दीप आदि भोगोपभोग वस्तुकू छोडे अर वैराग्य भा