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(१८३) नाही. कहनेवालेकुं भला न जानै ताकै दूसरा अणुव्रत होय है ॥ ३३३-३३४ ॥ __ भागें तीसरा अणुव्रतकू कहै हैं,जो बहुमुल्लं वत्थु अप्पमुल्लेण णेय गिढेदि । वीसरियं पि ण गिहृदि लाभे थूये हि तूसेदि ३३५ जो परदव्वं ण हरइ मायालोहेण कोहमाणेण । दिढचित्तो सुद्धमई अणुव्वई सो हवे तिदिओ ३३६ ___ भावार्थ-जो श्रावक बहु मोलकी वस्तु अल्पमोलकरि न ले, बहुरि कपटकार लोभकरि क्रोधकरि मानकरि परका द्रव्य न ले, सो तीसरा अणुव्रत धारी श्रावक होय है. सो कैसा है ? दृढ है चिच जाका, कारण पाय प्रतिज्ञा विगाडै नाहीं। बहुरि शुद्ध है उज्वल है बुद्धि जाकी. भावार्थ-सातव्य. सनके त्यागमें चोरीका त्याग तौ किया ही है तामें इहां यह विशेष जो बहु मोलकी वस्तु अल्प मोलमें लेनेमें भी झगडा उपजै है न जाणिये है कौन कारणनै पैला अल्पमैं दे है बहुरि परकी भूली वस्तु तथा मार्गमें पड़ी वस्तु भी न ले, यह न जाणै तौ पैला न जाणे ताका डर कहा ? बहुरि व्यापार में थोडे ही लाभ वा नफाकरि संतोष करै, बहुत लालच लोभते अनर्थ उपजै है. बहुरि कपट प्रपंचकरि काहूका धन ले नाही. कोईनै आपके पास धरया होय तौ ताकू न देनेके भाव राखै नाही. बहुरि लोभकरि तथा क्रोधकरि परका धन