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(१५२) लागै तैसें दुर्लभ है. बहुरि ऐसा दुर्लभ मनुष्यपणा पायकरि भी मिध्यादृष्टी होय पाप उपनाव है. भावार्थ-मनुष्य भी होय अर म्लेच्छखंड आदि तथा मिथ्यादृष्टीनिकी संगतिविष उपजि पाप ही उपजावै है ॥ १९० ॥
आगे कहै हैं मनुष्य भी होय अर आर्य खंडविष भी उपजै तौऊ उत्तम कुलआदिका पावणा अति दुर्लभ है,अह लहइ अजवंतं तह ण वि पावेइ उत्तमं गोतं । उत्तम कुले वि पत्चे धणहीणो जायदे जीवो ॥२९॥ ___ भाषार्थ-मनुष्य पर्याय पाय आर्यखंडविधै भी जन्म पावै तौ ऊंच कुल पावना दुर्लभ है बहुरि कदाचित् ऊंच कुल विषै भी जन्म पावै तौ धनहीन दरिद्री होय तासू कछू सुकृत वर्ण नाही पापहीमें लीन रहै ।। २९१ ॥ अह धनसाहओ होदि हुइंदियपरिपुण्णदा तदो दुलहा अह इंदिय संपुण्णो तह वि सरोओ हवे देहो २९२
भाषार्थ-बहुरि जो धनसहितपणा भी पाबै तौ इन्द्रियनिकी परिपूर्णता पावना अति दुर्लभ है. बहुरि कदाचित् इन्द्रियनिकी संपूर्णता भी पावै तौ देह रोग सहित पावै निरोग होना दुर्लभ है ॥ २९२ ॥ अह णीरोओ होदि हु तह विण पावेइ जीवियं सुइरं। अह चिरकालं जीवदि तो सीलं णेव पावेइ ॥२९॥