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भाषार्थ-अथवा कदाचित् नीरोग भी होय तो जीवित कहिये श्रायु दीर्घ न पावे यह पावना दुर्लभ है अथवा जो कदाचित आयु भी चिरकाल कहिये दीर्घ पावै तौ शील कहिये उत्तम प्रकृति भद्र परिणाम न पावै जाते सुष्टु स्वभाव पावना दुर्लभ है ॥ २९३॥ अह होदि सीलजुत्तो तह वि ण पावेइ साहुसंसरगं। अहतंपि कह वि पावइ सम्मत्वं तह वि अइदुलहं २९४ ____ भाषार्थ-बहुरि सुष्ठु स्वभाव भी कदाचित् पावै तो साधु पुरुषका संसर्ग संगति नाही पावै हैं. बहुरि सो भी कदाचित् पावै तौ सम्यक्त्व पावना श्रद्धान होना अति दुर्लभ है ॥ २९४॥ सम्मचे वि य लढे चारित्तं णेव गिण्हदे जीवो। अह कह वि तं पिगिण्हदितो पालेदंण सकेदि२९५ . भाषार्थ-बहुरि सम्यक्त भी कदाचित् पावै तौ यह जीव चारित्र नाही ग्रहण करै है. बहुरि कदाचित चारित्र भी प्रइण करै तौ तिसकू निर्दोष न पालि सके है ॥ २९५ ॥ रयणचये वि लढे तिव्वकसायं करेदि जइ जीवो। तो दुग्गईसु गच्छदि पणहरयणचओ होऊ ॥२९॥
भाषार्थ-जो यह जीव कदाचित रत्नत्रय भी पावै भर तीनकषायं करै तौ नाशकू प्राप्त भया है रत्नत्रय जाका ऐसा होयकरि दुर्गतिकू गमन कर है ॥ २९६ ॥