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(१६३) द्रव्यत्य पर्यायस्व जीवत्व अजीवत्व स्पर्शत्व रसत्व गन्धत्व व. र्णत्व शब्दत्व शुद्धत्व अशुद्धत्व मूर्तत्व अमूर्चत्र संसारित्व सिद्धत्व अवगाहत्व गतिहेतुत्व स्थितिहेतुत्व वर्तनाहेतुत्व इत्यादि विशेष धर्म हैं: सो तिनिके प्रश्नके वशते विधिनिषेधरूप वचनके सात भंग होय हैं. तिनिकै ' स्यात् । ऐसा पद लगावणा. स्यात् नाम कथंचित कोईप्रकार ऐसा अर्थमें है. तिसकरि वस्तुकौं अनेकान्त साधणा. तहां बस्तु स्यात् अस्तित्वरूप है, ऐसे कोईप्रकार अपने द्रव्य क्षेत्र काल भावकरि अस्तित्वरूप कहिये है. बहुरि स्यात् नास्तित्वरूप है, ऐसे पर वस्तुके द्रव्य क्षेत्र काल भावकरि नास्तित्वरूप कहिये है. बहुरि वस्तु स्यात् अस्तित्व नास्तित्वरूप है, ऐसे वस्तुमें दोऊ ही धर्म पाइये हैं अर वचनकरि क्रमतें कहे जाय हैं, बहुरि स्यात् अवक्तव्य है. ऐसे वस्तुमें दोऊ ही धर्म एक काल पाइये है तथापि एक काल वचनकरि कहे न जाय हैं तारै कोई प्रकार प्रवक्तव्य है. बहुरि अस्तित्व करि कया जाय है दोऊ एक काल हैं, तातें कहा न जाय ऐसे वक्तव्य भी है पर अवक्तव्य भी है तातें स्यात् अस्तित्व प्रवक्तव्य है. ऐसे ही नास्तित्व अवक्तव्य कहना. बहुरि दोऊ धर्म क्र. मकरि कहा जाय युगपत् कह्या न जाय तातै स्यात् अस्तित्व नास्तित्व अवक्तव्य कहना. ऐसे सात ही भंग कोई प्रकार संभव है. ऐसे ही एकत्व अनेकत्व आदि सामान्य धर्मनिपरि सात भंग विधिनिषेधत लगावणा. जैसे २ जहां अपेक्षा सं.