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(१७७) करि सम्यक्त्व अंगीकार करना. ऐसे गृहस्थधर्मके बारह भेदनिमें पहला भेद सम्यक्त्वसहितपणा है ताका निरूपण किया ॥३२७ ॥
आगे ग्यारह भेद प्रतिमाके हैं तिनिका स्वरूप कहै हैं तहां प्रथम ही दार्शनिक नामा श्रावककू कहै हैं,बहुतससमण्णिदं जं मज मंसादिाणदिदं दव्वं । जो ण य सेवदि णियमा सो दंसणसावओहोदि३२८
भाषार्थ-बहुत त्रस जीवनिके घातकार तथा निकरि सहित जो मदिग तथा अति निन्दनीक जोमांस भादि द्रव्य तिनिङ जो नियमन सेवै, भक्षण न करै सो दार्शनिक श्रावक है. भावार्थ-पदिरा अर मांस अर आदि शब्दतै मधु अर पंच उदंबर फन ए वस्तु बहुत प्रस जीवनिके घातकरि सहित हैं तातें दार्शनिक श्रावक है सो तिनिक भक्षण न करे। मद्य तौ मनकू मोहै है तब धर्मकू भूलै है. बहुरि मांस त्रस घातविना हाय ही नाही. मधुकी उत्पत्ति प्रसिद्ध है उस घातका ठिकाणा ही है. बहुरि पाल बड पीलू फलनिमें प्र. त्यक्ष त्रस जीव उडते देखिये हैं। अन्य ग्रंथनिमें कड्या है जो एश्रावकके आठ मूल गुण हैं अर इनिळू त्रस हिंसाके उपलक्षण कहे हैं तातै जिनि वस्तुनिमें त्रसहिंसा बहुत होय ते श्रावकके अभक्ष्य हैं. ताते भक्षण योग्य नाही. तथा सात विसन अन्याय प्रवृत्तिका मूल हैं तिनिका भी त्याग इहां कहया है. जूवा मांस मद वेश्श सिकार चोरी परस्त्री ए सात व्य