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जान सकें हे सो जीव जिनवचनविषे ऐसें श्रद्धान करे है जो जिनेश्वर देवने जो तत्त्व कहया है, सो सर्व ही मैं भले प्रकार इष्ट करूं हूं ऐसे भी श्रद्धावान् होय हैं. भावार्थ - जो जिनेश्वरके बचनकी श्रद्धा करें है जो सर्वज्ञ देवने कहा है सो सर्व मेरे इष्ट है. ऐसें सामान्य श्रद्धातें भी भाता सम्यक्त्व का है ॥ ३२४ ॥
मार्गे सम्यक्त्वका माहात्म्य तीन गाथाकरि कहे हैं, - रयणाण महारयणं सव्वजोयाण उत्तमं जोयं । रिद्धीण महारिद्धी सम्मत्तं सव्वसिद्धियरं ॥ ३२५॥
भावार्थ - सम्यक्त्व है सो रत्ननिविषै तौ महारत्न है बहुरि सर्व योग कहिये वस्तुकी सिद्धि करनेके उपाय, मंत्र, ध्यान आदिक तिनिमें उत्तम योग है जातैं सम्यक्त्वतैं मोक्ष सधै है . बहुरि अणिमादिक ऋद्धि हैं तिनिमें बडी ऋद्धि है बहुत कहा कहिये सर्वसिद्धि करनेवाला यह सम्यक्त्व ही है। सम्मत्तगुणप्पहाणी देविंदणरिंदवदिओ होदि । चत्तवयो वि य पावड़ सग्गसुहं उत्तमं विविहं ३२६
भाषार्थ - सम्यक्त्व गुणकरि सहित जो पुरुष प्रधान है सो देवनि इन्द्रनिकरि तथा मनुष्यनिके इन्द्र चक्रवर्त्यादिकरि बन्दनीय हो हैं . बहुरि व्रतरहित होय तौक उद्यम नानो प्रकारके स्वर्गके सुख पावै है. भावार्थ- जामें सम्यक्त्र गुण होय सो प्रधान पुरुष है देवेन्द्रादिककरि पूज्य होय है. ब