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( १६६ ) इहां इस ही आंशयतें अध्यात्म कथनीविष मुख्या तौ निश्चय कह्या है. अर गौणकू व्यवहार कह्या है. नहां अभेद धर्म तौ प्रधानकरि निश्चयका विषय कह्या. अर भेद नयकू गौणकरि व्यवहार कह्या सो द्रव्य तौ अभेद है. तातै निश्चयका आश्रय द्रव्य है. बहुरि पर्याय भेद रूप है. तातें व्यवहारका आश्रय पर्याय है तहां प्रयोजन ऐसा जो भेदरूप वस्तुकू सर्व लोक जाने है. तातै जो जानै सो ही प्रसिद्ध है. याहीत लोक पर्यायबुद्धि हैं. जीवकै नरनारक आदि पयाय हैं. तथा राग द्वेष क्रोध मान माया लोभ श्रादि पर्याय हैं, तथा ज्ञानके भेदरूप मतिज्ञानादिक पर्याय हैं तिनि पर्यायनिहीकौं लोक जीव जाने हैं. तातै इनि पर्यायनिविषे अभेदरूप अनादि अनन्त एकभाव जो चेतना धर्म ताकौं ग्रहणकरि निश्चय नयका विषय कहिकरि जीव द्र. व्यका ज्ञान कराया. पर्यायाश्रित जो भेद नय ताकौं गौण कीया. तथा अभेद दृष्टिमें यह दीखे नाहीं तातै प्रभेद नयका हड़ श्रद्धान करावनेकौं कहा जो पर्याय नय है सो व्य. पहार है, अभूतार्थ है, असत्यार्थ है. सो भेद बुद्धिका एकांत निराकरण करनेके अर्थ यह कहना जानना. ऐसा नाहीं कि यह भेद है, सो असत्यार्य करा. जो वस्तुका स्वरूप नाही है जो ऐसे सर्वथा माने तो अनेकांतमें समझा नाहीं सर्वथा एकांत श्रद्धानत मिथ्यादृष्टी होय है. जहां अध्यात्मशास्त्र निविष निश्चय व्यवहार नय कहे हैं तहां भी विनि दोऊ: