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(१५१) भागें ऐसे क्रूर परिणामीनिका नरकपात होय है, ऐसे कहे हैं-- सो तिव्वअसुहलेसो णरये णिवडेइ दुक्खदे भीमे । तत्थ वि दुक्खं भुजदि सारीरं माणसं पउरं ॥२८॥
भाषार्थ-ऋर तियेच होय सो तीव्र अशुभ परिणामकरि अशुभ लेश्या सहित मरि नरकमें पडै है. कैसा है नरक दुःखदायक है भयानक है तहां शरीरसम्बन्धी तथा मनस. म्बधी प्रचुर दुःख भोगवै है ॥ २८८॥
भागें कहै हैं तिस नरकतें नीसरि तिर्यंच होय दुःख
तत्तो णीसरिऊणं पुणरवि तिरिएसु जायदे पावं । तत्थ विदुक्खमणंतं विसहदिजीवोअणेयविहं २८९
भाषार्थ-तिस नरक नीसरि फेरि भी तिर्यंच गतिविफै उपजे है तहां भी पापरूप जैसैं होय तेसैं यह जीव अनेक प्रकारका अनन्त दुःख विशेषकरि सहै है ॥ २८९ ॥ . . ___ आगे कहै हैं कि मनुष्यपणा पावना दुर्लभ है सो भी मिथ्याती होय पाप उपजावै है,रयणं चउप्पहेपिव मणुअत्त्रं सुट्ठ दुल्लहं लहिय । मिच्छो हवेइ जीवो तत्थ वि पावं समज्जेदि ॥२९॥
भाषार्थ-तियच नीसरि मनुष्यगति पावणा अति द. ल्लेभ है. जैसैं चौपथमें रत्न पड्या होय सो बडा भाग्य हाथ