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(१४५) नाय होय तिस ही अर्थके परिणमनरूप जिस काल परिणमै ताकौं तिस नामकरि कहै सो एवंभूत नय है. याकौं निश्चय भी कहिये हैं. जैमैं गऊकौं चाले तिस काल गऊ कहै. अन्य काल कछु न कहै ॥ २७७॥
भागें नयनिके कथनकौं संकोचे हैं,एवं विविहणएहिं जो वत्थू ववहरेदि लोयाम्म । दसणणाणचरितं सो साहदि सरगमोक्खं च २७८ ____ भाषार्थ-जो पुरुष या प्रकार नयनिकरि वस्तुकौं व्यवहाररूप कहै है, साधे है अर प्रवर्चाव है सो पुरुष दर्शन ज्ञान चारित्रको साधै है. बहुरि स्वर्ग मोक्षको साथै है.भा. चार्य-प्रमाण नयनिकरि वस्तुका स्वरूप यथार्थ सधै है. जो पुरुष प्रमाण नयनिका स्वरूप जाणि वस्तुकौं यथार्थ व्यव. हाररूप प्रवर्ताव है तिलके सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्रकी अर नाका फल स्वर्ग मोक्षकी सिद्धि होय है ।। २७८ ॥ ___ आगें कहै हैं जो तत्त्वार्थका सुनना जानना धारणा भावना करनेवाले विरले हैं,विरला णिसुणहि तच्चं विरला जाणति तच्चदो तच्चं। विरला भावहिं तच्चं विरलाणं धारणा होदि ॥७९॥ __ भाषार्थ-जगतविष तत्वकौं विरले पुरुष सुणै हैं. वहुरि सुनि करि भी तत्वकौं यथार्थ विरले ही जाणै हैं. बहुरि जानि करि भी विरले ही तत्त्वकी भावना कहिये बारबार प्र.