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(१४३) यया जो अर्थ ताहि सर्वकू सवरूप साथै सो ऋजुसूत्र नय है. भावार्थ-वस्तु समय समय परिणमै है सो एक समयवर्चमान पर्यायकू अर्थपर्याय कहिये है. सो या ऋजुसूत्र नय का विषय है. निस मात्र ही वस्तुकौं कहै है. बहुरिघडी मुहूर्त आदि कालकौं भी व्यवहारमें वर्तमान कहिये है सो तिस वर्तमान कालस्यायी पर्यायकौं भी साधै तातें स्थूल अजुसूत्र संज्ञा है. ऐसे तीन तौ पूर्वोक्त द्रव्यार्थिक अर एक ऋजुसूत्र ए च्यारि नय तौ अर्थनय कहिये हैं ॥ २७४ ॥ - आगें तीन शब्दनय हैं तिनिकौं कहै हैं तहां प्रथमही शब्दनयकौं कहै हैं,सव्वेसिं वत्थूणं संखालिंगादिबहुपयारोहिं । जो साहदि णाणत्तं सद्दणयं तं वियाह ॥ २७५ ॥ _भाषार्थ-जो नय सर्व वस्तुनिकै संख्या लिंग आदि बन हुत प्रकार करि नानागााकौं साथै सो शब्द नय जाणूभावार्थ-संख्या एक वचन द्विवचन बहुवचन, लिंग स्त्री पुरुष नपुंसकका वचन, प्रादि शब्दमें काल कारक पुरुष उ. पर्सग लेो. सो इनिकरि व्याकरणके प्रयोग पदार्यकौं भेदरूपकार कहै सो शब्द नय है. जै पुष्य तारका नक्षत्र एक ज्योतिषीके विमानकै तीन लिंग कहै नहां व्यवहार में विरोध दीख जातै सो ही पुरुष सो ही स्त्री नपुंसक कैसे होय ! तथापि शब्द नयका यह ही विषय है जो जैसा शब्द कहै वैसा ही अर्थकू भेदरूप मानना ॥ २७५॥ .