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(१४२) परमाणूपज्जतं ववहारणओ हवे सो वि ॥२७३॥
भाषार्थ-जो नय संग्रह नयकरि विशेषरहित वस्तुकंग्र. हण कीया या, ताकू परमाणु पर्यन्त निरन्तर भेदै सो व्यवहार नय है. भावार्थ-संग्रह नय सर्व सव सर्वकू कथा वहां व्यवहार भेद करै सो सद्रव्यपर्याय है. बहुरि संग्रह द्रव्य सामान्यकू अहै तहां व्यवहार नय भेद करै. द्रव्य जीव अजीव दोय भेदरूप है बहुरि संग्रह जीव सामान्यकू ग्रहै तहां व्यवहार भेद करै । जीव संसारी सिद्ध दोय भेदरूप है इत्यादि। बहुरि पर्यायसामान्यकू संग्रहण करै तहां व्यवहार भेद करै पर्याय अर्थपर्याय व्यंजनपर्याय भेदरूप है तैसे ही संग्रह अ. जीव सामान्यकू अहै तहां व्यवहारनय भेद करि अजीव पु. दूलादि पंच द्रव्य भेदरूप है, बहुरि संग्रह पुगल सामान्यकुं ग्रहण करे तहां व्यवहारनय अणु स्कंध घट पट आदि भेदरूप कहै ऐसें जावं संग्रह ग्रहै तामें भेद करता जाय तहां फेरि भेद न होय सकै तहां ताई संग्रह व्यवहारका विषय है. ऐसे तीन द्रव्यर्थिक नयके भेद कहे ॥ २७३ ॥ .. अव पर्यायाथिकके भेद कहै हैं तहां प्रथम ही ऋजुसूत्र जयकू कहे हैं,जो वट्टमाणकाले अत्थपज्जायपरिणदं अत्थं । संतं साहदि सव्वं तं वि णयं रिजुणयं जाण २७४ . भाषार्थ-जो नय वर्तमान कालविङ्ग अर्थ पर्यायरूप परि