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(१४०) हित चेतन अचेतनपणा विशेष है, बहुरि चित् सामान्यकरि संसारी सिद्ध जीवपणा विशेष है, बहुरि संसारीपणा साषान्यकरिसहित त्रस थावर जीवपणाविशेष है. इत्यादि. बहुरि अचेतन सामान्यकरिकै सहित पुद्गल आदि पांच द्रव्यविशेष हैं. बहुरि पुगलसामान्यकरिसहित अणु स्कन्ध घट पट आदि विशेष हैं इत्यादि पर्यायार्थिक नय हेतुतै साधै है॥२७॥
. आगे द्रव्यार्थिक नयका भेदनिकू कहै हैं तहां प्रथमही नैगम नयकू कहै हैं,-- जो साहेदि अदीदं वियप्परूवं भविस्समत्थं च । संपडिकालाविट्रं सोहणयो गमोणेयो॥२७॥
भाषार्थ-जो नय अतीत तथा भविष्यत तथा वर्तमानकूविकल्परूपकरि संकल्पमात्र साधै सो नैगम नय है. भा. वार्थ-द्रव्य है सो तीन कालके पर्यायनितें अन्वयरूप है ताकू अपना विषयकरि अतीतकाल पर्यायकू भी वर्तमानवत् संकल्पमें ले आगामी पर्यायकू भी वर्तमानवत् संकल्पमें ले वर्तमानमें निष्पन तथा अनिष्पन्नकू निष्पन्नरूप संकल्पमें ले ऐसे ज्ञानकू तथा वचनकू नैगमनय कहिये है. याके भेद अनेक हैं. सर्वनयके विषयकू मुख्य गौणकरि अपना संकल्परूप विषय करै है. इहां उदाहरण ऐसा-जैसे इस मनुष्य नामा जीव द्रव्यकै संसार पर्याय है पर सिद्धपर्याय है यह मनुष्य पर्याय है ऐसे हैं । तहां संसार अतीत अनागत वर्तमान तीन काल सम्बन्धी भी है, सिद्धपणा अनागत ही है, मनुष्यपणा वर्ग