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(१३८) 4-नय हैं ते सर्व ही सापेक्ष तौ सुनय हैं. निरपेक्ष कुनय हैं. वहां सापेक्षते सर्व वस्तु व्यवहारकी सिद्धि है, सम्पखानस्वरूप है. पर कुनयनित सर्व लोकन्यवहारका लोप होय है, मिथ्याज्ञानरूप है। ___ आगें परोक्ष ज्ञानमै अनुमान प्रमाणभी है ताका उदाहरणपूर्वक स्वरूप कहै हैं,जं जाणिज्जइ जीवो इंदियवावारकायचिट्टाहिं । तं अणुमाणं भण्णदित पि णयं बहुविहं जाण २६७ . भाषार्थ-जो इन्द्रियनिके व्यापार अर कायकी चेष्टानिकरि शरीरमै जीवकू जाणिये सो अनुमान प्रमाण कहिये है सो यह अनुमान ज्ञान भी नय है सा अनेक प्रकार है. भावार्थ-पहलै श्रुतज्ञान के विकल्प नय कहे थे, इहां अनुमानका स्वरूप कह्या जो शरीरमै तिष्ठता जीव प्रत्यक्ष ग्रहणमैं नाही श्रावै यात इन्द्रियनिका पार स्पर्शना स्वादलेना बोलना सूंघना सुनना देखना आदि चेष्टा गमन प्रादिक चिन्हनित जानिये कि शरारमैं जीव है सो यह अनुमान है जातै साधन साध्य का ज्ञान होय सो अनुमान कहिये. सो यह भी नय ही है. परोक्ष प्रमाणके भेदनिमैं कहया है सो परमार्थकरि नय ही है. सो स्वार्थ परमार्थके भेदते तथा हेतु चिन्हनिके भेदते अनेक प्रकार कया है ।। २६७॥ .. भागें नयके भेदनिकू कहै हैं,