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(१३७) तहां ऐसा न जानना जो अन्यधर्मनिका अभाव है किंतु प्र. योजनके पाश्रय एक धर्म• मुख्यकरि कहै है, अन्यकी विवक्षा नाहीं है। - भागें वस्तुका धर्मकू अर तिसके वाचक शब्दकू पर तिसके ज्ञानकू नय कहै हैं,सो चिय इक्को धम्मो वाचयसदो दि तस्स धम्मस्स । तं जाणदितं णाणं ते तिण्णि विणयविसेसा य २६५
भाषार्थ-जो वस्तुका एक धर्म बहुरि तिस धर्मका वाचक शब्द बहुरि तिस धर्म• जानने वाला ज्ञान ए तीनू ही नयके विशेष हैं. भावार्थ-वस्तुका ग्राहक ज्ञान अर ताका बाचक शब्द अर वस्तु इनकू जैसे प्रमाणस्वरूप कहिये तैसे ही नय कहिये।
आगें पूछे हैं कि वस्तुका एक धर्म ही ग्रहण करै ऐसा जो एक नय ताळू मिथ्यात्व कैसे कह्या है ताका उत्तर
ते साविक्खा सुणया णिरावक्खा ते वि दुग्णया होति सयलववहारसिद्धी सुणयादो होदि णियमेण २६६ . भाषार्थ-ते पहले कहे जे तीन प्रकार नय ते परस्पर अपेक्षासहित होय तब तौ सुनय हैं. बहुरि ते ही जब अपेक्षारहित सर्वथा एक एक ग्रहण कीजै तब दुर्नय हैं बहुरि सुनयनि सर्व व्यवहार वस्तुके स्वरूपकी सिद्धि होय है. भावा