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(१३५) भाषार्थ-जो वस्तु अनेकान्त है सो अपेक्षासहित ए. कान्त भी है तहां श्रुतज्ञान जो प्रमाण ताकरि साधिये नौ अनेकान्त ही है. बहुरि श्रुतज्ञान प्रमाणके अंश जे नय तिनिकरि साधिये तब एकान्त भी है. सो अपेक्षारहित नाहीं है जाते निरपेक्ष नय मिथ्या हैं. निरपेक्षात वस्तुका रूप नाही देखिये है. भावार्थ-प्रमाण नौ वस्तुके सर्वधर्षकौं एक काल साधै है अर नय हैं ते एक एक धर्महीको ग्रहण करै हैं ताते एकनयके दूसरी नयकी सापेक्षा होय तौ वस्तु सधे अर अपेक्षारहित नय वस्तुकौं साधे नाही, ताते अपेक्षा वस्तु अनेकान्त भी है ऐसे जानना ही सम्यग्ज्ञान है ॥२६॥
भाग श्रुतज्ञान परोक्षपणे सर्वकू प्रकाशै है यह कहै हैं,सव्वं पिअणेयंतं परोक्खरूवण पयासेदि। तं सुयणाणं भण्णदि संसयपहुदीहिं परिचित्र।२६२॥
भाषार्थ-जो ज्ञान सर्व वस्तुकू अनेकान्त परोक्षरूपकरि प्रकाश जाणें कहै सो श्रुतज्ञान है । सो कैसा है संशयविपयेय अनध्यवमायकरि रहित है। ऐसा सिद्धांतमें कहे हैं। भावार्थ-जो सर्व वस्तुकं परोक्षरूपकरि, अनेमन्त प्रकाशै सो श्रुतज्ञान हैं । शास्त्र के वचन सुननेते अर्थक जाने सो परोक्ष ही जाने अर शास्त्रमें सर्व ही वस्तुका अनेकान्तात्पक स्व. रूप कह्या है सो सर्व ही वस्तुकू जाने । बहुरि गुरुनिके उ. पदेशपूर्वक जाने तब संशयादिक भी न रहै ॥ २६२॥ । आगे श्रुतज्ञानके विकल्स जे मेद ते नय हैं तिनिका