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(१२४) प्रागें द्रव्यनिके व्यय उत्पाद कहा है सो कहै हैं,पडिसमयं परिणामो पुव्वो णस्सेदि जायदे अण्णो। वत्थुविणासो पढमो उववादो भण्णदे विदिओ॥२३८||
भाषार्थ-जो वस्तुका परिणाम समयसमयप्रति पहले तो विनसै है अर अन्य उपजै है सो पहला परिणामरूप व. स्तुका तौ नाश है, व्यय है. अर अन्य दूसरा परिणाम उ. पज्या ताकू उत्पाद कहिये. ऐसें व्यय उत्पाद होय हैं ।
आगे द्रव्यकै ध्रुवपणाका निश्चय कहै हैं,णो उप्पजदि जीवो दव्वसरूवेण णेय णस्सेदि। तं चेव दवमित्वं णिचचं जाण जीवस्स ॥ २३९ ॥
भाषार्थ:-जीव द्रव्य है सो द्रव्यस्वरूपकरि नाशकू प्राप्त न होय है अर नाहीं उपजै है सो द्रव्यमात्रकरि जीवकै निस्यपणा नाणूं. भावार्थ-यह ही ध्रुवपणा है जो जीव सचा पर चेतनताकरि उपजे विनसे नाही, नवा जीव कोई नाही उपज है विनसे भी नाहीं है ॥ २३६ ॥
श्रा द्रव्यपर्यायका स्वरूप कहै हैं,अण्णइरूवं दुवं विसेसरूबो हवेइ पज्जाओ। दत्वं पि विसेसेण हि उप्पज्जदिणस्सदे सतदं॥२४०॥
भाषार्थ-जीवादिक वस्तु अन्वयाकरि द्रव्य है सो ही विशेषकरि पर्याय है. बहुरि विशेषरूपकरि द्रव्य भी निरंतर उपजे विनस हैं. भावार्थ-अन्वयरूप पर्यायनिविष सामान्य