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(१२७) . भाषार्थ-अनादि निधन द्रव्यविष काल आदि लब्धिकरि सर्व पर्यायनिकी अविद्यमानकी ही उत्पत्ति है. भावार्थअनादिनिधन द्रव्यविष काल आदि लब्धिकरि पर्याय अ. विद्यमान कहिये अणछती उपजै हैं. ऐसें नाहीं कि सर्व पर्याय एक ही समय विद्यमान हैं ते ढकते जाय हैं. समय समय क्रम” नवे नवे ही उपजै हैं. द्रव्य त्रिकालवर्ती सर्व पर्यायनिका समुदाय है, कालभेदकरि क्रमसे पर्याय होय हैं। ____ आगे द्रव्य पर्यायनिकै कथंचित् भेद कथंचित् अभेद दिखावै हैं,दव्वाणपज्जयाण धम्मविवक्खाइ कीरए भेओ। वत्थुसरूवेण पुणो ण हि भेओ सक्कदे काउं॥२४५॥ __भाषार्थ-द्रव्यके भर पर्यायके धर्मधर्मीकी विवक्षाकरि भेद कीजिये है बहुरि वस्तुस्वरूपकरि भेद करनेकू नाहीं स. मर्थ हूजिये है. भावार्थ-द्रव्यपर्यायकै धर्म धर्म की विवक्षाकरि भेद करिये है. द्रव्य धर्मी है पर्याय धर्म है बहुरि वस्तुकरि अभेद ही है. केई नैयायिकादिक धर्मधर्मीके सर्वथा भेद मानै हैं तिनका मत प्रमाणवाधित है ॥२४५॥
श्रागें द्रव्यपर्यायकै सर्वथा भेद माने हैं तिनकू दूषणे 'दिखावै हैं,
जदि वत्थुदो विभेदो पज्जयदव्वाण मण्णसे मूढ। . तो णिरवेक्खा सिद्धी दोडं पिय पावदेणियमा॥२४॥