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(१२५) भावकों द्रव्य कहिये. अर विशेष भाव हैं ते पर्याय हैं. सो विशेषरूपकार द्रव्य भी उत्पादव्ययस्वरूप कहिये. ऐसा नाहीं कि पर्याय द्रव्यतै जुदा ही उपजै विनसै है किंतु प्र. भेद विवक्षात द्रव्ध ही उपजै विनसै है. भेदविवक्षात जुदे भी कहिये. ___ आगें गुणका स्वरूप कहै हैं,सरिसोजो परिमाणो अणाइणिहणो हवे गुणो सो हि। सो सामण्णसरूवो उप्पज्जदि णस्सदे णेय ॥२४॥ - भाषार्थ-जो द्रव्यका परिणाम सदृश कहिये पूर्व उत्तर सर्व पर्यायनिविष समान होय अनादिनिधन होय सो ही गुण है. सो सामान्यस्वरूपकरि उपजे विनर्स नाहीं है. भावार्थ-नैसैं जीवद्रव्यका चैतन्य गुण सर्व पर्यायनिमें वि. द्यमान है अनादिनिधन है सो सामान्यस्वरूपकरि उपजे विनसे नाहीं है. विशेषरूपकारि पर्यायनिमें व्यक्तिरूप होय ही है, ऐसा गुण है. ते ही अपना अपना साधारण असाधारण गुण सर्व द्रव्यनिमें जानना।
आज कहै हैं गुणाभास विशेषस्वरूपकार उपजे विनसै है गुणपर्यावनिका एकपणा है सो ही द्रव्य है,सोवि विणस्सदि जायदि विसेसरूवेण सव्वदव्वेसु। दव्वगुणपज्जयाणं एयत्तं वत्थु परमत्थं ॥२४॥ ... भषा -जो गुण है सो भी द्रव्यनिविषै विशेषरूपकार