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(१३१) अब तिनि पदार्थनिका जाननेवाला ज्ञान है ताका स्वस्प कहै हैं,णाणाधम्मेहि जुदं अप्पाणं तह परं पि णिच्छयो। जंजाणेदि सजोगंतं णाणं भण्णए समये ॥२५३ ॥
भाषार्थ-जो नाना धर्मनि सहित प्रात्मा तग पर द्र. व्यनिकू अपने योग्यळू जाणे सो निश्चयनै सिद्धान्तविष ज्ञान कहिये. भावार्थ -जो आपकू तथा परकू अपने आवरणके - योपशम तथा क्षयके अनुसार जाननेयोग्य पदार्थकू जानै सो ज्ञान है. यह सामान्य ज्ञानका स्वरूप कहया ॥२५३ ॥
अब सर्वप्रत्यक्ष जो केवलज्ञान ताका स्वरूप कहै हैं,जंसव्वं पि पयासदि दव्वपजायसंजुदं लोयं । तह य अलोयं सव्वं तं णाणं सव्वपञ्चक्खं ॥२५४ ॥ ___भाषार्थ-जो ज्ञान द्रव्यपर्यायसंयुक्त लोककू तथा अलोककू सकू प्रकाशक जाण सो सर्वप्रत्यक्ष केवलज्ञान है ॥ ____ आगें ज्ञानकू सर्वगत कहै हैंसव्वं जाणदि जसा सव्वगयंत पिवुच्चदे तह्मा । ण य पुण विसरदिणाणं जीवं चइऊण अण्णत्थ २५५ ___भाषार्थ-जाते ज्ञान सर्व लोकालोककू जाणे है ता ज्ञानकू सर्वगत भी कहिये है. बहुरि ज्ञान है सो जीवकू छोडि करि अन्य जे ज्ञेय पदार्थ तिनिधि न जाय है. भावार्थभान सर्व लोकालोककू जानै है. या सर्वगत तथा सर्वव्याप