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(१२९) न्यारे न्यारे प्रात्माते भिन्नरूप प्रसिद्ध हैं, तिनकं लोप कैसे करिये १ जोन मानिये तो ज्ञान भी न ठहरे. जाने विना वान काहेका १॥ २४८॥ जं सव्वलोयसिद्ध देहं गेहादिवाहिरं अत्यं। . जो तंपि णाणमण्णदिण मुणदि सो णाणणाम पि ॥ ___ भाषार्थ-जो देह गेह आदि बाहय पदार्थ सर्व लोकप्रसिद्ध हैं निनकू भी जो ज्ञान ही माने तो वह वादी ज्ञानका नाम भी जाने नाही. मानार्थ-बाहय पदार्थकू भी ज्ञान, ही माननेवाला ज्ञानका स्वरूप नाही जाण्या सो तो दुरि हीरहो ज्ञानका नाम मी नाहीं जान है ॥ २४९ ॥
आगें नास्तित्ववादीके प्रति कहै हैं,अच्छीहिं पिच्छमाणो जीवाजीवादि बहुविहं अत्य। जो भणदि णत्थि किंचि विं सो झुट्ठाणं महाझुटो॥
भाषार्थ-जो नास्तिक वादी जीव अजीव आदि बहुत प्रकारके अर्थनिकू प्रत्यक्ष नेत्रनिकरि देखतो संतो भी कहै 'किछ भी नाही है सो असत्यवादीनिमें महा असत्यवादी है भावार्थ-दीखती वस्तुकू भी नाहीं बतावै सो महाझूठा है। जं सव्वं पि य संत तासो वि असंतउं कहं होदि। णस्थिति किंचि तचो अंहवा सुण्णं कहं मुणदि। . भाषार्थ-जो सर्व वस्तु सवरूप है विद्यमान है सो वस्तु