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असत्यरूप अविद्यमान कैसें होय अथवा किछू भी नाहीं है ऐसौ तो शून्य है ऐसा भी कैसे जानें, भावार्थ-छती वस्तु प्रणती कैसे होय तथा किछू भी नाहीं है तो ऐसा कहनेवाला जाननेवाला भी नाहीं ठहरचा. तब शून्य है ऐसा कौन जा ॥ २५९ ॥
मार्गे इस ही गाथाका पाठान्तर है सो इस प्रकार है, जदि सव्वं पि असतं तासो वि य संतउं कहं भणदि । स्थिति किं पि तच्चं अहवा सुण्णं कहं मुणदि ॥
भाषार्थ - जो सर्व ही वस्तु असत् है तो वह ऐसें कहनेवाला नास्तिकवादी भी असतुरूप ठहरया तब किछु भी तत्त्व नाही है ऐसे कैसे कहै है. अथवा कहें भी नाही सो शून्य है ऐसे कैसे जाने है. भावार्थ- आप छता है और कहै कि कछू भी नहीं सो यह कहना तो बडा अज्ञान हैतथा शून्यच्च कहना तो प्रलाप ही है कहनेवाला ही नाही तब कहै कौन ? सो नास्तित्ववादी प्रलापी है | २५१ ॥ किं बहुणा उत्तेण य जित्तियमेत्ताणि संति णामाणि । तित्तियमेत्ता अत्था संति हि नियमेण परमत्था २५२
- बहुत कहनेकरि कहा ? जेता नाम है तेता ही निमकर पदार्थ परमार्थ रूप हैं. भावार्थ - जेते नाम हैं तेते सत्यार्थ पदार्थ हैं. बहुत कहनेकरि पूरी पडो. ऐसें पदार्थका
स्वरूप कहया ।। २५२ ॥