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(१२३) सत् है सो इस स्वरूपकरि तौ सर्वके एकपणा है. बहुरि अ. पने अपने गुण चेतनपणा जडपणा आदि भेदरूप हैं. ताते गुणके भेदत सर्व द्रव्य न्यारे २ हैं. तथा एक द्रव्यकेत्रिकालवर्ती अनन्तपर्याय हैं सो सर्व पर्यायनिविषै द्रव्य स्वरूपकरि तो एकता ही है. जैसे चेतनके पर्याय सर्व ही चेतन स्वरूप हैं. बहुरि पर्याय अपने अपने स्वरूपकरि भिन्न भी हैं. भिन्न कालवर्ची भी हैं. तातै भिन्न २ भी कहिये. तिनके प्रदेश भेद भी माहीं तातै एक ही द्रव्यके अनेक पर्याय हो हैं यामें विरोध नाहीं ॥ २३६ ॥ आगें द्रव्यकै गुणपर्यायस्वभावपणा दिखावै हैं,जो अत्यो पडिसमयं उप्पादव्वयधुवचसम्भावो । गुणपज्जयपरिणामो सचो सो भण्णदे समये ॥२३॥ __ भाषार्थ-जो अर्थ कहिये वस्तु है सो समय समय उत्पाद व्यय ध्रुवपणाके स्वभावरूप है सो गुणपर्यायपरिणामस्वरूप सत्त्व सिद्धांतविष कहै हैं. भावार्थ-जे जीव आदि ' वस्तु हैं ते उपजना विनसना अर थिर रहना इन तीन भावमयी हैं. अर जो वस्तु गुणपर्याय परिणामस्वरूप है सो ही सत् हैं. जैसे जीवद्रव्यका चेतनागुण है जिसका स्वभाव.. विभावरूप परिणमन है. तेसैं समय समय परिणमैं हैं ते पर्याय हैं. तैसे ही पुद्गलका स्पर्श रस गन्धवर्ण गुण हैं ते स्वभावविभावरूप समय समय परिणमै हैं हे पर्याय हैं. ऐसे सर्व द्रव्य गुणपर्यायपरिणामस्वरूप प्रगटें हैं।