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स्थानमें अनुभागबंधकू कारण स्थान ऐसे असंख्यातलोकममाण हैं. तिनमेंसों एक सर्वजघन्यरूप परिणमै तहां तिस योग्य सर्वजघन्य ही योगस्थानरूप परिजमै, तब जगत्त्रेणी के असंख्यातवें भाग योगस्थान अनुक्रमतें पूरण करै. बीचिमें अन्य योगस्थानरूप परिणमैं सो गिणतीमें नाहीं. ऐसे योगस्थान पूरण भये अनुभागका स्थान दुसरारूप परिणम वहां भी तैसें ही योगस्थान सर्व पूरण करै । बहुरि तीसरा अनुभागस्थान होय तहां भी तेते ही योगस्थान भुगतै, ऐसे असंख्यातलोकप्रमाण अनुभागस्थान अनुक्रमतें पूरण करै तब दूसरा कषायस्थान लेणा. तहां भी तैसें ही ऋपते अ. संख्यात लोकप्रमाण अनुभागस्थान तथा जगत्त्रेणीके अ.. संख्यातवें भाग योगस्थान पूर्वोक्त क्रमते भुगतै तब तीसरा कषायस्थान लेणा. ऐसे ही चतुर्थादि असंख्यात लोकप्रमाण कषायस्थान पूर्वोक क्रमतें पूरण कर, तब एकसमय अधिक जघन्यस्थिति स्थान लेगा, तामैं भी कषायस्थान अनुभागस्थान योगस्थान पूर्वोक्त क्रमतें भुगतै. ऐसें दोय समय अधिक जघन्यस्थितित लगाय तीसकोड़ाकोटीसागर पर्यन्त ज्ञानावरणकर्म की स्थिति पूरण करै. ऐसे ही सर्वमू. लकर्मप्रकृति तथा उत्तरप्रकृतिनका क्रम जानना. ऐसैं परिणमतें अनंत काल वीतै, विनिळू मेला कीये एक भावपरिबर्तन होय. ऐसें अनंत परावर्तन यह जीव भोगता आया है।
मागें पंचपरावर्तनका कथन• संकोचे हैंएवं अणाइकालं पंचपयारे भमेइ संसारे।