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( ४७ ) उदय करि रहित है ताकू ईयर्यापथ आस्रव कहिये. जो पुद्रल धर्गणा कर्मरूप परिणमै ताकू द्रव्यास्रव कहिये. जीवके प्रदेश चंचल होंय ताकू भावास्रव कहिये ।। ____श्रागें मोहके उदयसहित आस्रव हैं ऐसा विशेषकर
मोहविभागवसादो जे परिणामा हवंतिजीवस्स । ते आसवा मुणिज्जसु मिच्छचाई अणेयविहा ॥८॥
भाषार्थ-पोहकर्मके उदयतें बे परिणाम या जीवकै होय हैं ते ही भास्रव हैं, हे भव्य तू प्रगटपणे ऐसे जाणि. ते परिणाम मिथ्यात्वनै आदि लेकर अनेक प्रकार हैं. भावार्थ-फर्मवन्धके कारण प्रास्रव हैं. ते मिथ्यात्व अविरत प्र माद कपाय योग ऐसे पांच प्रकार हैं. तिनमें स्थिति अनुभागरूप बंधकं कारण मिध्यात्वादिक ज्यारि ही हैं सो ए मोहकर्मके उदय होय हैं. बहुरि योग हैं ते समयमात्र बंधकू करै हैं. कछू स्थिति अनुभागकं करे नाही तातें बंधका कारणमें प्रधान नाहीं।
आगे पुण्यपापके भेदकरि प्रास्रव दोय प्रकार कहै हैंकम्मं पुण्णं पावं हेडं तेसिं च हॉति सच्छिदरा । मंदकसाया सच्छा तिव्वकसाया असच्छा हु ॥९॥
भावार्य-कर्म है सो पुण्य तथा पाप ऐसे दोय प्रकार है. ताईं कारण भी दो प्रकार है. प्रास्त भर चर कहिले