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(११७) उत्तरपारणामजुदंत चिय कज्जं हवेणियमा ॥२२२॥ ___ भाषार्थ-पूर्व परिणाम सहित द्रव्य है सो कारणरूप है बहुरि उत्तर परिणामयुक्त द्रव्य है सो कार्यरूप नियमकरि है ॥ २२२ ॥ ___ आगें वस्तुकै तीन कालविषे ही कार्यकारणभावका निश्चय करै हैं,कारणकज्जविसेसा तिस्सु वि कालेसु होंति वत्थूणं। एक्केक्कम्मि य समये पुवुत्तरभावमासिज्ज ॥२२३॥ ___ भाषार्थ-वस्तुनिकै पूर्व अर उत्तर परिणामकौं पायकरि तीनूं ही कालविष एक एक समयविषै कारण कार्यके विशेष होय हैं. भावार्थ-वर्तमान समयमें जो पर्याय है सो पूर्वसमय सहित वस्तुका कार्य है. तैसे ही सर्व पर्याय जाननी. ऐसे समय २ कार्यकारणभावरूप है ॥ २२३ ॥ - आगें वस्तु है सो अनंतधर्मस्वरूप है ऐसा निर्णय करै हैं-- संति अणंताणंता तीसु वि कालेसु सव्वदव्वाणि । सव्वं पि अणेयंतं तत्तो भणिदं जिणिंदेहिं ॥२२॥
भाषार्थ-सर्व द्रव्य हैं ते तीनूं ही कालमें अनंतानंत हैं अनन्त पर्यायनिसहित हैं ताते जिनेन्द्र देवने सर्व ही वस्तु अनेकांत कहिये अनंतधर्मस्वरूप कह्या है ॥ २२४ ॥ . ___ आज कहै हैं जो अनेकांतात्मक वस्तु है सो अर्थ क्रियाकारी है,