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(११६) मात्र हैं बहुरि मध्य उत्कृष्ट अनेक प्रकार है. तहां श्राकाशके एक प्रदेशतें दूजे प्रदेशपर्यंत पुद्गलका परमाणु मन्दगतिकरि जाय तेता कालकू समय कहिये. ऐसे जघन्ययुक्ताऽसंख्यात समयको एक प्रावली कहिये, संख्यात आवलीके समूहको एक उस्वास कहिये, सात उच्छ्वासका एक स्तोक कहिये, सात स्तोकका एक लव कहिये, साढा अडतीस लवकी एक घटी कहिये, दोय घटीका मुहूते कहिये। तीस मूहूर्तका रात दिन कहिए, पनरै अहोरात्रिका पक्ष कहिये, दोय पक्षका मास कहिये, दोय मासका ऋतु कहिये, तीन ऋतुका प्रयन कहिये, दोय अयनका वर्ष कहिये, इत्यादि पल्यसागर कल्प प्रादि व्यवहार काल अनेक प्रकार है ॥ २२० ॥
। भागे अतीत अनागत वर्तमान पर्यायनिकी संख्याः कहैं हैं,तेसु अतीदा णता अणंतगुणिदा य भाविपज्जाया। एक्को विवट्टमाणो एत्तियमित्तो वि सो कालो॥२१॥ ___ भाषार्थ-तिनि द्रव्यनिके पर्यायनिविषै अतीतपर्याय अनन्त हैं. बहुरि अनागत पर्याय तिनित अनन्तगुणा हैं वर्तमान पर्याय एक ही है. सो जेता पर्याय है, तेता ही सो व्यवहार काल है. ऐसे द्रव्यनिका निरूपण कीया___ अब ट्रन्यनिकै कार्यकारणभावका निरूपण कर हैं,पुव्वपरिणामजुचं कारणभावेण वट्टदे दव्वं ।