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( ९२ ) भमरो जोयणमेगं सहस्स सम्मुच्छिदो मच्छो ॥१६॥
भाषार्थ-वेइन्द्रियविष शंख बडा है ताकी उत्कृष्ट अवगाहना बारह योजन लांबी है. तेइंद्रियविष गोभिका कहिये कानखिजूरा बडा है ताकी उत्कृष्ट अवगाहना तीन कोश लांबी है. बहुरि चौइंद्रियविष बडा भ्रपर है ताकी उत्कृष्ट अवगाहना एक योजन लांबी है. बहुरि पंचेंद्रियविष बडा मच्छ है ताकी उत्कृष्ट अवगाहना हजार योजन लांबी है. ए जीव अंतका स्वयंभूरमण द्वीप तथा समुद्रमें जानने ॥१६७॥
अब नारकीनकी उत्कृष्ट अवगाहना कहै हैं,पंचसयाधणुछेहा सचमणरए हवंति णारइया । तत्वो उस्सेहेण य अद्धद्धा होति उवरुवरि ॥१६॥
भाषार्थ-सातवें नरकविषै नारकी जीवनिका देह पांचसै धनुष ऊंचा है. ताकै ऊपरि देहकी ऊंचाई आधी आधी है. छट्ठामें दोसै पचास धनुष, पांचवामें एकसौ पच्चीस धनुष, चौथेमें साढावासठि धनुष, तीसरामें सवाइकतीस धनुष, दूभरामें पनरा धनुष आना दश, पहलामें सात धनुष तेरह आना, ऐसें जानना- इनमें पटल गुणचास हैं तिनविरे न्यारी न्यारी विशेष अवगाहना त्रैलोक्यसारतें जाननी ॥१८॥
अब देवनिकी अवगाहना कहै हैं,असुराणं पणवीसं सेसं णवभावणा य दहदंडं । वितरदेवाण तहा जोइसिया सत्तधणुदेहा ॥ १६९॥